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Channel: मेरी पसन्द –लघुकथा
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अनूठे संसार का निर्माण

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मानव सभ्यता का विकास होने के बाद अपनी भावनाओं के सम्प्रेषण के लिए भाषा के साथ लिपि का भी अविष्कार हुआ जो अपने आरंभिक रूप में चित्र लिपि से विकसित होते हुए वर्तमान में विभिन्न रूपों में उपलब्ध है।भाषा व लिपि की खोज के साथ ही मनुष्य की कल्पनाशीलता का भी विकास हुआ जिसकी अभिव्यक्ति शनैः शनैः अनेक विधाओं जैसे चित्रकला, गायन, नृत्य व लेखन आदि के माध्यम से वह करने लगा।
लिपि के माध्यम से उसने अपने शब्दों को आकार देना शुरू किया । धीरे- धीरे लेखन के विविध रूपों ने प्रगति करते हुए अपनी शैलियाँ विकसित कर लीं।
पद्य की तरह ही गद्य विधा के भी कई रूप हैं जैसे कहानी, नाटक, रिपोर्ताज़, निबंध रेखाचित्र आदि और इसके साथ ही अस्तित्व में आईं छोटी कथाएँ, जिन्हें हम आज लघुकथा के नाम से जानते हैं।
कुछ साल पहले फेसबुक के माध्यम से कुछ साहित्यिक समूहों से जुड़ी जहाँ पहली बार मैंने लघुकथाओं के विषय जाना, हालांकि स्वयं लेखन आरम्भ करने से पहले मैं केवल इन कथाओं को पढ़ती थी । कई लघुकथाएं ऐसी होती थीं जिनकी छाप मन- मस्तिष्क पर लम्बे समय तक बनी रहती थी।
दरसल मुझे लगता है कि किसी की रचना पढ़ने का अर्थ है उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से से, उसके वैचारिक दृष्टिकोण व कल्पनाशीलता से परिचित होना। कथाओं के अक्षर मात्र छपे हुए शब्द नहीं होते बल्कि कुछ जज़्बात की तस्वीर होते हैं जो काली स्याही में इंद्रधनुषी रंगों को समेटे हुए पाठक के मस्तिष्क में प्रवेश कर एक अनूठे संसार का निर्माण कर देते हैं।
लघुकथाओं के सागर से अपनी पसन्द में वरीयता क्रम के अनुसार दो लघुकथाओं को चुन पाना बहुत कठिन है पर फिर भी अगर मैं आंख बंद करके सोचती हूँ तो सबसे पहले जिस लघुकथा का नाम आता है वह है- कोलाज़ जिसके लेखक हैं- सुकेश साहनी जी ‘।
कोलाज़ एक प्रयोगात्मक व व्यंग्यात्मक लघुकथा है जिसमें विभिन्न विज्ञापनों व समाचारों के साथ वास्तविकता के धरातल पर कड़वी सच्चाई से भरी खबरों को एक साथ जोड़ा गया है । कोलाज़ यानी बहुत सारे चित्रों को एक विशिष्ट रूप में सजा कर एक ही फ्रेम में प्रस्तुत करना। इस कथा में अलग- अलग स्थानों पर घटित घटनाओं को एक क्रम में साथ लाकर कथानक का निर्माण किया गया है।अतः इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसका शीर्षक ‘ कोलाज़ ‘ सर्वथा उपयुक्त है, क्योंकि शीर्षक ही रचना का वह प्रमुख अंग होता है, जो पाठकों के लिए उत्सुकता उत्पन्न करता है कि उन्हें अमुक रचना को क्यों पढ़ना चाहिए। वैसे भी शीर्ष का अर्थ है ‘ सबसे उन्नत भाग ‘ इस कारण उपयुक्त शीर्षक चयन करना लेखक की महती जिम्मेदारी होती है।
लघुकथा में पात्रों का स्थान विज्ञापनों की पंक्तियों व समाचारों के शीर्षकों को दिया गया है। इस लिहाज से इस कथा के सभी पात्र लघुकथा के विस्तार व प्रभाव के अनुरूप ही चुने गए हैं। सम्वादों के स्थान पर सटीक पंक्तियों व उसके जुड़े विपरीत समाचार बहुत मजबूत कथोपकथन बनाते हैं , उदाहरण के लिए इन पंक्तियों को देखें-
” बिहार के मरबल जिले के तीरा गाँव में सविता देवी की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वह काली थी (दो हफ्तों में मनचाहा गोरापन पाएँ, मिल्की व्हाइट अपनाएँ)”
कथा में शब्दों के माध्यम से दृश्य व परिवेश को दर्शाया जाता है। प्रयोगात्मक लघुकथाओं में विषय के अनुरूप दृश्य उकेरना भी एक चुनौती है। प्रस्तुत कथा में सम्वादों का अभाव है, लेकिन उसके बावजूद भी दृश्य स्वतः ही पाठक के समक्ष निर्मित हो जाते हैं।
” दो जून रोटी के लिए खेतों में जुलाई के लिए हल को बैलों की जगह खींच रही महिलाएँ और लड़कियाँ। “
यह पंक्ति यूँ तो समाचार का शीर्षक है, परंतु इसे पढ़ते ही कंधे पर हल उठाकर आगे बढ़ रही महिलाओं के दृश्य साकार होने लगते हैं।
किसी भी रचना का सृजन तभी सफल माना जाता है जब उसे समझने के लिए पाठक को प्रयास न करने पड़ें । कई प्रयोगात्मक रचनाएं इस कारण भी असफल हो जाती है क्योंकि उनकी क्लिष्ट भाषा शैली व प्रतीक आसानी से समझ नहीं आते और यदि किसी रचना के उद्देश्य को लेखक या समीक्षक द्वारा समझाना पड़े तो ऐसे में उस रचना का आम जनमानस में पैठ बनाना असम्भव हो जाता है। आमतौर पर पाठक आरम्भ की चंद पंक्तियाँ पढ़ कर ही यह तय कर लेता है कि उसे अमुक कथा को पढ़ना चाहिए या नहीं। सुकेश साहनी जी की इस लघुकथा को जब एक बार पढ़ना आरम्भ किया जाता है, तो अंत तक पढ़ने से खुद को रोका नहीं जा सकता। इसकी कसावट, भाषा शैली और प्रस्तुतिकरण कथा को रोचक बनाते हैं।
‘कोलाज़ ‘ शीर्षक की यह लघुकथा हर आयु व वर्ग के लोगों द्वारा आसानी से समझी जा सकती है।
लघुकथा के उद्देश्य को समझने के लिए कुमार सम्भव जी की इन पंक्तियों का उद्धरण देना चाहती हूँ- लघुकथा उपदेश नहीं देती-लघुकथा ज्ञान नहीं देती, अपितु मानव मन में उस विसंगति की पीड़ा स्वतः प्रेरित करती है, ताकि उससे बाहर निकलने का भाव मन में खुद -ब- खुद उत्पन्न हो।’
यह लेखकीय कौशल ही कहलाएगा जहाँ  इतनी आसानी से लघुकथा के उद्देश्य को बिना कहे ही समझा दिया जाय। वास्तव में ‘कोलाज ‘ लघुकथा चमक – दमक से भरी दुनिया की चकाचौंध से भ्रमित आँखों को वास्तविकता के कठोर धरातल पर खोलती है।

मेरी पसंद की दूसरी कथा है -जानकी वाही जी की लघुकथा ‘सहमा हुआ सच’ जब पहली बार पढ़ी थी, तब से अब तक जितनी बार भी पढ़ी, हर बार मन उद्वेलित हो गया।
शीर्षक कथा के अनुरूप सटीक है, जो कथानक के प्रति उत्सुकता बढ़ाता है; क्योंकि कहते हैं कि सच कभी डरता नहीं और सच मजबूती से खड़ा रहता है, किसी भी हालात के आगे बदलता नहीं; लेकिन जब सच को सहम कर खामोश होना पड़े, तो स्थिति की भयावहता क्या हो सकती है! यही जिज्ञासा पाठक को कथा को पढ़ने के लिए मजबूर करती है।
इस लघुकथा में कश्मीर के हालात और भोली-भाली जनता की भावनाओं का सटीक चित्रण है। आतंकवाद और हव्वा की कोई जात नहीं होती। ‘ हव्वा ‘ ..यह एक शब्द ही आतंकवादियों के मन नारी की छवि का चित्रण करने में समर्थ है कि उनकी सोच ‘आदिम ‘ है ,जिसके अनुसार नारी मात्र उपभोग की वस्तु है।
शब्दों का इस तरह प्रयोग किया गया है कि एक शब्द भी फालतू नहीं लगता। सधी हुई भाषा-शैली कथानक का प्रस्तुतीकरण, पंच सभी मिलकर इसे एक बेहतरीन लघुकथा की श्रेणी में रखते हैं।
कश्मीर की वादियों में पाँव पसारे आतंक से आम कश्मीरी की भयभीत अवस्था  का दृश्यांकन हो या आजादी की लड़ाई के मुगालते में जीते हुए आतंकवादियों के प्रति उनके मन का नर्म  कोना…. इन सभी को कम शब्दों में लेखिका ने व्यक्त कर दिया है।
इस कथा के मुख्य पात्र है- कश्मीरी दम्पती, जो आम इंसान की तरह ही अपने परिवार ,बेटी और अपने पालतू जानवरों की परवाह करने वाले हैं और अंत में जब उनकी आंख खुलती है ,तब तक वे  हालात के आगे घुटने टेक चुके होते हैं और बहुत कुछ खो चुके होते हैं।
दूसरा पात्र हैं- आतंकवादी जो ज़ेहाद व आज़ादी की लड़ाई की कीमत आम लोगों से वसूलते हैं और तीसरा व चौथा पात्र हैं- बकरा दद्दू और परिवार की लड़की जो आजादी की इस लड़ाई की भेंट चढ़ गए।

लेखिका ने आतंकवादियों के घर मे आने के बाद तेजी से बदले माहौल को जिस तरह एक वाक्य में प्रस्तुत किया है उसे पढ़कर पाठक सन्न रह जाता है – ” घर का लाडला बकरा दद्दू चूल्हे पर चढ़ी देग में और जवान बेटी अंदर कमरे में खदकने लगी।”

यहाँ  लेखिका का कौशल पूरी तरह सामने आता है। लघुकथा की विशेषता होती है ‘ अनकहा ‘ यहाँ  मात्र एक वाक्य  द्वारा लेखिका अनकहे रूप में एक बहुत बड़ा प्रश्न छोड़ देती है कि कब तक धर्म व क्षेत्रीयता के ज़हर से आम इंसान को खोखला व रुग्ण बनाया जाता रहेगा, जो उसे अंत में बर्बादी के सिवा कुछ नहीं देगा; इसके साथ ही अपरोक्ष रूप से शिक्षा के प्रसार का सन्देश भी इस कथा में है; क्योंकि शिक्षित व्यक्ति की सोच के दायरे विस्तृत होते हैं । वह अपना भला-बुरा समझ पाने में समर्थ होता है।
ऐसी कथाएँ  मन पर छाप छोड़ने में सफल होती है साथ ही समाज को एक सार्थक संदेश देने में सफल होती है कि स्वार्थपूर्ति के लिए मज़हब के नाम पर आतंक को बढ़ावा देने वाले कभी किसी के सगे नहीं होते।

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1-कोलाज़-सुकेश साहनी

एक सर्वे के मुताबिक गर्भपात के लिए नर्सिंग होम लाई जाने वाली कुँआरी माँओं की औसत आयु उन्नीस से घटकर हुई चौदह (अमेरिका की ‘बार्बी’ गुड़िया की तर्ज पर जापान में बनने वाली गुड़िया ‘रीका चान हुई गर्भवती, बच्चों के बीच दिनोंदिन हो रही लोकप्रिय) लगातार तीसरी बच्ची पैदा होने पर एक व्यक्ति ने अपनी तीनों बेटियों की गोली मारकर कर दी हत्या. ..पत्नी के बेटा पैदा न कर पाने से खिन्न था पति (टैक्नेलॉजी हैज नाउ बीन एबल टू इनश्योर दैट द गर्ल चाइल्ड विल नाट इवन बी कंसीव्ड) दो जून रोटी के लिए खेतों में जुलाई के लिए हल को बैलों की जगह खींच रही महिलाएँ और लड़कियाँ।

सोनीकोल ने गरीबी और भुखमरी के कारण बेच दिया अपने इकलौते एक वर्षीय कलेजे के टुकडे को (हंग्री क्या? डायल हंग्री हैल्पलाइन! आधे घंटे में होम डिलिवरी) देवास जिले के सुदूर बसे गाँव के दरबार सिंह के अनुसार गाँव में आज तक किसी ने नहीं देखा कोई स्कूल और न ही कोई मास्टर (घर बैठे शिक्षा पाएँ, जस्ट लॉग आन टू टीचर्स डॉट काम) दूसरों का मैला ढोने पर मजबूर दलित महिलाएँ गाँव से दूर गंदे तालाब का पानी पीने पर मजबूर। गलती से जब कभी उनका घड़ा दूसरे घड़े से छू जाता है, दूसरी महिलाएँ फोड़ देती हैं उनका घड़ा (याहू! वाटर वर्ल्ड में रहूँगा मैं…दिन-दिन भर घूमँगा…मस्ती में झूमूंगा…घर नहीं जाऊँगा मैं ) मुंबई की लोकल ट्रेन में दिन दहाड़े बालिका से हुआ गैंग रेप (चैट विद रियल ‘टीन’ लीज़ा हू सेट्स द हार्ट ऑन फायर। अवर डॉल्स नेवर से ‘नो’) बिहार के मरबल जिले के तीरा गाँव में सविता देवी की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि वह काली थी (दो हफ्तों में मनचाहा गोरापन पाएँ, मिल्की व्हाइट अपनाएँ) विज्ञापनों में महिलाओं को उपभोग की वस्तु के रूप में दिखाने से महिला सांसद नाराज। सर्वदलीय बैठकर बुलाकर सख्त कानून बनाने की अपील (पश्चिमी अफ्रीका में आयोजित क्वीन कोन्सेट्स के मानकों के अनुसार नारी का शरीर गिटार जैसा होना चाहिए। आदर्श क्वीन की देह का आकर्षण उसके भरे-पूरे नितंब हैं। नारी चले तो इन नितंबों का हिलना अपने आपमें आकर्षक होना चाहिए) स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने भारत की रेटिंग घटाई। दूसरी बड़ी ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज’ ने भी एस एंड पी की हाँ में हाँ मिलाई। साम्राज्यवादियों की ये दोनों वित्तीय संस्थाएँ विश्व पूँजीवाद और खासकर साम्राज्यवाद की आवश्यकताओं और भविष्य के मद्देनजर काम करती हैं। इनकी नज़र भारत के विशाल बाज़ार और समृद्ध प्राकृतिक संपदा पर है। घटती रेटिंग के दबाव के चलते भारत का शासकवर्ग अपने ही देश के मजदूरों के सस्ते श्रम को निचोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता (इंडिया एक चमकता हुआ ब्रांड है। अगले दशक में शामिल होगा दुनिया की तीन बड़ी ताकतों में। पिछले तीन वर्षों में सरकार की उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी के लिए जस्ट लाग आन टू शाइनिंग इंडिया डॉट कॉम)
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2-सहमा हुआ  सच – जानकी बिष्ट वाही

” मौसम के आसार अच्छे नहीं लग रहे हैं। बहुत ज़ोर से बरसेगा आज।”
    काली गहराती रात और काले होते आसमान को देखकर चूल्हे की आग को तेज करती पत्नी  बोली ।ठंड उसके  गर्म फिरन के अंदर आकर मानों जम गई थी।

” हूँ उ उ… पति उस  बासी अख़बार के पन्ने में नजरें गढ़ाये बुदबुदाया जिसमें वह बाज़ार से सामान लाया था- 
” क्या पढ़ रहे हो जी?” पत्नी ने चाय  हाथ में थमाई।
” लिखा है अगर सारे पत्थरबाज और आतंकवादी हथियार छोड़ कर समाज की मुख्य धारा में आएंगे  तो उन्हें माफ़ कर दिया जायेगा। और सेना के एक मेजर पर हिंसक भीड़ पर ज्यादती करने के लिए एफ .आई आर . दर्ज़ होगी।”

” ये तो बड़ी अच्छी बात है जी आख़िर सभी हमारी आज़ादी के लिए ही लड़ रहे हैं। जाने ये सपना कब पूरा होगा?  अच्छा खुरसल से जो रिश्ता आया है बिटिया के लिये ,क्या सोचा उसके बारे में?”

” सोचना क्या ? जितनी जल्दी हो तय कर देनी है। क्यों रे दद्दू ?”  
लाड़ से मुँह लगे हट्टे-कट्टे बकरे की पीठ पर हाथ फिराते हुए पति बोला। पास ही बैठे दद्दू ने भी सिर हिलाकर अपनी मौन सहमति दी हो जैसे।
” थप ..थप…थप… की दरवाज़े पर पड़ती थाप से दोनों का कलेजा मुँह में आ गया।गॉंव के बाहर बने घर पर इस वक़्त कौन?
  बेसब्री में लिपटी आवाज़ दुबारा आई।
  ” या अल्लाह सब खैर करे”   पति बुदबुदाया और काँपते हाथों से दरवाज़ा खोलते ही वहीं सर्द हो जम गया। मुँह लपेटे और हाथ में बन्दूक लिए एक ने बेदर्दी से  उसे परे धकेला और वे पाँचों बिन बुलाए मेहमान से अंदर घुस आए।
बाहर मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी। इसके बाद घर के अंदर का दृश्य बड़ी तेज़ी से घटा। घर का लाड़ला बकरा दद्दू चूल्हे पर चढ़ी देग में और जवान बेटी अंदर कमरे में खदकने लगी ।
   छोटे बेटे को छाती से लगाये ,आँसुओं से तर, हाथ जोड़े माँ-बाप की मिमियाती आवाज़ को जलती आंखों से भस्म करता एक बोला-
”  हम तुम्हारी आज़ादी के लिए अपनी ज़ान की बाज़ी लगा रहे हैं।और तुम  लोगों से इतना भी नहीं होता कि हमारे सुख का भी कुछ खयाल रखो?”

” क्या बेटी -बेटी लगा रखी है ? क्या अपने धर्म की लगा रखी है? हव्वा की कोई जात नहीं होती मियाँ… ।” 
दूसरे की विभत्स हँसी और माँ -बाप की बेबसी  से बाहर मौसम और अंदर पूरा घर खदकने लगा।

-0-megharakeshrathi01@gmail.com

 


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